कोल्हानम ख़रीदे

कोल्हानम खरीदें :

निम्नलिखित बैक अकाउंट में 300 रूपये जमा करने के उपरांत भुगतान रसीद के साथ अपना पता editorjrr@gmail.com पर भेज दें. इस नंबर 9334077378 पर संपर्क करें

ऑनलाइन भुगतान करे :

In favour of: Jamshedpur Research Review

Account No:33673401796

IFSC Code : SBIN0000096

State Bank of India, Bistupur, Main Branch, Jamshedpur, Jharkhand

For more information call -09334077378 or mail-editorjrr@gmail.com

पुस्तक का विवरण :

ISBN: 978-93-5457-769-7(द्वितीय संस्करण 2022)

सर्वाधिकार सुरक्षित – डॉ० मिथिलेश कुमार चौबे

प्रकाशक- ज्ञानज्योति एजुकेशनल एंड रिसर्च फाउंडेशन(ट्रस्ट), शास्त्रीनगर-3, कदमा, जमशेदपुर
झारखण्ड- 831005

दूरभाष- 91-9334077378, email- editorjrr@gmail.com

मुद्रण– ज्ञानज्योति एजुकेशनल एंड रिसर्च फाउंडेशन(ट्रस्ट), शास्त्रीनगर-3, कदमा, जमशेदपुर, झारखण्ड- 831005

मूल्य– 300 रूपये

सदियों से झारखण्ड के पहाड़, पठार और आरण्यक विभिन्न वनवासी समूहों के निवास-स्थान रहे हैं। कोल्हानम की कहानी इन्ही धरतीपुत्रों के शौर्य, बलिदान और सनातन धर्म-संस्कृति के लिए मर मिटने की गाथा है।

यह वह कहानी है जो लिखित इतिहास में नहीं, बल्कि इन वनवासियों की लोक-कथाओं, लोक-कलाओं तथा लोकगीतों में कहानियों की शक्ल में आदि काल से दर्ज हैं तथा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक निरंतर प्रवाहित होती रही हैं। भारतीय भारतीय पुरातात्विक विभाग द्वारा इस प्रदेश में कई  प्रागैतिहासिक असुर-स्थलों, शिलाचित्रों, प्राचीन मंदिरों आदि की खोज की गई है। कोल्हानम में इन्हीं पुरातात्विक साक्ष्यों की  पृष्ठभूमि में इन वनवासियों की शौर्य-गाथाओं को एक बेहद रोचक कहानी के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

इस उपन्यास में जिन ऐतिहासिक घटनाओं और स्थानों का जिक्र किया गया है, वे किसी न किसी रूप में भारतीय पुरातात्विक विभाग के नवीनतम उत्खननों, प्राचीन बौद्ध ग्रंथो, इतिहास की मानक पुस्तकों में उपलब्ध है तथा आधुनिक इतिहासकारों द्वारा उद्धरित है। इस उपन्यास में वर्णित स्थान, जैसे: मुंडेश्वरी मंदिर (कैमूर), टंगीनाथ धाम (गुमला), हंसा (खूंटी), सरिद्केल (खूंटी), तसना एवं करकरी, नदियाँ (खूंटी), सीताकुंड (हजारीबाग),सरजमहातू (चाईबासा), हाराडीह (राँची) इत्यादि वर्तमान झारखण्ड राज्य में पुरातात्विक महत्व के स्थान हैं।

उपन्यास को रोचक बनाने तथा ऐतिहासिक स्थानों एवं घटनाओं को एक कहानी का रूप देने के उद्देश्य से लेखक द्वारा कुछ काल्पनिक घटनाओं एवं काल्पनिक चरित्रों की मदद ली गई है।

इस उपन्यास में इस क्षेत्र की दो प्रमुख जनजातियों; असुरों और मुंडाओं के मगध के मौर्य, शुंग और कण्व और दक्षिण के आंध्र-भृत्य सातवाहन राजवंशों के साथ ईसा-पूर्व संबंधों का दिलचस्प वर्णन है।

कोल्हानम् में सम्राट अशोक, पुष्यमित्र शुंग और आंध्रभृत गौतमी-पुत्र शतकर्णी का चरित्र-चित्रण रूढ़िबद्ध न होकर बल्कि आधुनिक अनुसंधानों के आधार पर किया गया है।

कोल्हानम् की कहानी में ‘तिस्स’ जैसे कुछ ऐसे चरित्रों को भी शामिल किया गया है जिनकी चर्चा बौद्ध इतिहासकारों द्वारा की गई है लेकिन उन्हें इतिहास की किताबों में अधिक महत्व नहीं दिया गया है। इस कहानी में ‘नागवंश’ और ‘बौद्ध धर्म के कुछ अनुयायियों की चर्चा राष्ट्रीय एकता और अखंडता के आलोक में अलग सन्दर्भ में गई है।

वैदिक, बौद्ध, जैन, आजीवक, आदि बृहद सनातन धर्म समाज का अभिन्न हिस्सा हैं। वर्तमान चुनौतियों को रेखांकित करता यह उपन्यास, भारतीय इतिहास और पौराणिक कथाओं को वर्तमान सन्दर्भ में प्रस्तुत करता है.

पाठकों की राय

एक सांस में आप पढ़ सकते हैं। रोचक भी है और रहस्यपूर्ण भी

        संजय कृष्ण, दैनिक जागरण, राँची, झारखण्ड

रहस्य और इतिहास में लिपटी हुई यह कथा आदिवासी बनाम सनातन के अंतरसंबंधों की पड़ताल करती है। क्या मुंडेश्वरी का मुंडाओं से कोई संबंध है? विंध्याचल देवी किसकी आराध्या हैं? वैदिक असुर से झारखंड के असुर के बीच कोई तादात्म्य है? इस तरह के तमाम सवाल हैं? वैदिक युग से लेकर आज तक इसका विस्तार है। विंध्याचल मुंडेश्वरी धाम से लेकर मगध तक। जैन, बौद्ध छोटानागपुर के पठार पर क्यों बसे। जैनियों का नागवंश से कुछ तो संबंध है? क्या इसके पीछे कोई इतिहास, मिथ या लोकश्रुति है? अशोक को लेकर उस मिथ पर भी नई रोशनी कि कलिंग युद्ध के बाद वह बौद्ध बना जबकि यह उपन्यास बताता है कि वह बहुत पहले ही बौद्ध बन गया था। और भी बहुत कुछ है। एक सांस में आप पढ़ सकते हैं। रोचक भी है और रहस्यपूर्ण भी।

झारखंड की आदिवासी संस्कृति का हिंदू रीतियों से जुड़ा होने का सबूत विकास श्रीवास्तव, प्रभात खबर, जमशेदपुर

विश्वविद्यालय में रिसर्च (पीएचडी) करने आयी छात्रा की कहानी के माध्यम से आपने जिस तरीके से झारखंड के आदिवासियों की संस्कृति उनका हिंदू रीतियों से जुड़ा होने का सबूत दिया है, वह वैसे लोगों के गाल पर तमाचा है जो यहां के आदिवासियों को अक्सर गाह-बगाहे अलग लाइन में खड़ा कर देते हैं, और उन्हें भड़काने का काम करते हैं. कोल्हानम् के माध्यम से आपने झारखंड की संस्कृति को भी चित्रित करने काम किया है. इसे पढ़ने से कई लोगों की जानकारी का स्तर बढ़ेगा।                                            

कोल्हानम् छोटानागपुर की धरती से निकली एक बेहतरीन कृति है शैलेश कुमार, शोधार्थी, राँची विश्वविद्यालय, झारखण्ड

कोल्हानम् की खूबसूरती यह है कि अगर आप इसकी पहली लाइन पढ़ लें, तो आप इसकी अंतिम पंक्ति तक कब पहुँच जायेंगे आपको पता भी नहीं चलेगा। कुछ समय तक विचारधारा से आपका पीछा छुट जायेगा और आप उपन्यास की बेहतरीन विधा के आनंद में आप खो जायेंगे। उपन्यास में रूचि न रखने वाले पाठक भी कुछ नया अनुभव करेंगे।

इतिहास लेखन के नाम पर होने वाले बौद्धिक घोटालों का दस्तावेजराकेश पाण्डेय, साहित्यकार, रंगकर्मी एवं प्राध्यापक

आप इस किताब से बेहद नफरत करेंगे, या बेहद मोहब्बत यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आपको भारत में धर्मांतरण के जूनून और इतिहास लेखन के नाम पर होने वाले बौद्धिक घोटालों की कितनी जानकारी और समझ है।

इस महान क्षेत्र की सांस्कृतिक निरंतरता और भारत की सनातन परंपरा के साथ उसकी समंजनता का एक दस्तावेज  दिव्येंदु त्रिपाठी, वरिष्ठ लेखक एवं पुरातत्ववेत्ता

कोल्हानम्, प्राचीन भारत में झारखंड के छोटानागपुर की सक्रिय उपस्थिति को दर्शाता एक विलक्षण उपन्यास है।  चूँकि मैं भी छोटानागपुर का ही हूँ  इसलिए इसके कथानक से एक आत्मीयता सी अनुभूत हुई। इस महान क्षेत्र की सांस्कृतिक निरंतरता और भारत की सनातन परंपरा के साथ उसकी समंजनता का एक दस्तावेज -सा है यह उपन्यास। इस पुस्तक का आस्वाद लेने के लिए साहित्य के साथ साथ प्राचीन इतिहास के प्रति अनुराग और बोध  होना भी जरूरी है, अन्यथा आँखें कुछ और ही ढूंढने लगेंगी। उपन्यास मिथिलेश चौबे ने इतिहास को विकृत करनेवाले तथाकथित शोध -प्रक्रिया के वितंडावाद का पर्दाफाश किया है। इतिहास प्रेमियों को यह आख्यान एक बार अवश्य पढ़नी चाहिए। काफी कुछ स्पष्ट होता नज़र आएगा।

साहित्य, संस्कृति और सच आपको बहुत कुछ मिलेगा इस उपन्यास मेंरूण प्रभात, साहित्यकार

हिन्दी साहित्य मे, शोधपरक उपन्यासों की आज भी बहुत कमी है! केल्हानम् इस मानक को पूरा करता है। झारखंड और बिहार की पृष्ठभूमि पर खड़ा यह उपन्यास इतिहास, भूगोल और समसामयिक घटनाओं  की संजीदगी लिए क़ई तथ्यों पर पाठक का ध्यान आकृष्ट करता है। खासकर उच्च शिक्षा के क्षेत्र मे डाक्टरेट की डिग्री!! कोल्हानम् का एक मजबूत सफर है। इस उपन्यास को पढ़ते हुए क़ई बार ऐसा लगा जैसे इन घटनाओं का साक्षी मै खुद ही हूँ। क़ई प्रसंग चलचित्र की भाँति आँखों के सामने घुमने लगे।

संथाल होने के नाते अपने पूर्वजों की गौरव -गाथा पढ़ कर अभिभूत हूँ    राजेश हांसदा, सामाजिक कार्यकर्ता, पश्चिमी सिंहभूम, झारखण्ड

कोल्हानम की कहानी भारत के जिस हिस्से से सम्बंधित है वह नदियों, पहाड़ों और जंगलों से घिरा भारतीय संस्कृति के प्राचीनतम भू-भागों में एक है। यह पुरातन हरित प्रदेश जिसे आज हम झारखण्ड के नाम से जानते है, आदिम जनजातियों का निवास-स्थान है। दुर्भाग्य से झारखण्ड के प्राचीन इतिहास का अधिकांश हिस्सा अभी भी अन्धकार में डूबा हुआ हैं। इस उपन्यास में लेखक ने अद्भुत कथानक और अकाट्य साक्ष्यों के माध्यम से झारखण्ड की प्राचीन संस्कृति और शेष-भारत की सनातन संस्कृति के मध्य के मजबूत संबंधो को सफलतापूर्वक स्थापित किया है। इस उपन्यास को पढ़ने के क्रम में आप कोल्हानम एक उपन्यास नही बल्कि इतिहास की किताब मान लेने से बच नहीं पायेंगे।

कोल्हानम खरीदें :

निम्नलिखित बैक अकाउंट में 150 रूपये जमा करने के उपरांत भुगतान रसीद के साथ अपना पता editorjrr@gmail.com पर भेज दें. इस नंबर 9334077378 पर संपर्क करें

ऑनलाइन भुगतान करे :

In favour of: Jamshedpur Research Review

Account No:33673401796

IFSC Code : SBIN0000096

State Bank of India, Bistupur, Main Branch, Jamshedpur, Jharkhand

For more information call -09334077378 or mail-editorjrr@gmail.com